बच्चे भगवान का दिया हुआ सबसे अनोखा एवं अनमोल तोहफ़ा होता है। यूँ तो हर माँ-बाप को अपनी संतान से अटूट स्नेह होता है लेकिन आज की तनावयुक्त जीवनशैली के कारण वे कभी-कभार कुछ ऐसा कर जाते हैं जिससे न सिर्फ बच्चे की मानसिक स्थिति पर विपरीत असर पड़ता है बल्कि माँ-बाप और बच्चे के बीच एक अनचाही खाई भी पनपने लगती है। अधिकांश माँ-बाप यह जानते हैं कि उन्हें अपने बच्चे की परवरिश करने का सही तरीका अपनाना चाहिए जिसके लिए उन्हें बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है। आदर्श लोक में तो अभिभावकों को मजबूती, उर्जा तथा धैर्य का पर्याय माना गया है लेकिन व्यवहारिक दुनिया में देखा जाये तो परिपूर्णता एक तरह की विषमता है और कोई भी व्यक्ति पूर्णतः सही नहीं है। इसलिए हमें वास्तविकता को अपनाना चाहिए और बच्चों की परवरिश करने के दौरान की जाने वाली गलतियों को सुधारना चाहिए।
अभिभावकों द्वारा की जाने वाली कुछ प्रमुख गलतियाँ:
चिल्लाना एवं टोकना:
कभी-कभी अभिभावक अपने बच्चों को काबू में रखने के लिए उन पर चिल्लना शुरू कर देते हैं जिससे सिर्फ उनका अहम् ही शांत हो पाता है। उन्हें यह समझना होगा कि यह समस्या का हल नहीं है। समय के साथ-साथ बच्चे सुनने के लिए अभ्यस्थ हो जाते हैं और इस स्थिति से निपटने के तरीके भी ढूँढ लेते हैं। अभिभावकों को चाहिए की वे पहले अपना गुस्सा ठंडा करें उसके बाद शांत चित्त होकर बात करें क्योंकि बच्चे तभी आपका कहना मानेंगे जब उनसे सही तरीके से बात की जाये।
अभिभावकों द्वारा की जाने वाली दूसरी बड़ी गलती है टोकना। कई बार अभिभावक अपने बच्चों को अनजाने में चीजों के लिए टोकना प्रारंभ कर देते हैं। वे हर छोटी बड़ी-चीज़ के लिए उनसे बार-बार प्रश्न करते हैं। इस स्थिति से बचने के लिए अभिभावकों को उन्हें टोकने की बजाये उनसे धैर्यपूर्वक बात करना चाहिए। बच्चों द्वारा गलती किये जाने पर उन्हें हल्का-फुल्का दंड दे सकते हैं।
उपदेश/व्याख्यान और सलाह देना:
व्याख्यान या उपदेश केवल एकालाप होता है जिसमें दूसरे पक्ष की भागीदारी न के बराबर होती है। अगर कोई बच्चा अपना होमवर्क पूरा नहीं कर पा रहा हो और उसे कोई उपदेश देने लगे तो उसका उस बच्चे के ऊपर विपरीत असर ही होगा। इसी तरह अभिभावकों द्वारा दी जाने वाली व्यर्थ की सलाहों को भी बच्चे अनसुना कर देते हैं। इससे परिणाम कुछ नहीं निकलता अपितु उर्जा का ह्रास ज़रूर होता है। इस स्थिति से निपटने के लिए अभिभावकों को अपने आप को बच्चों की जगह पर रख कर देखना चाहिए जिससे उन्हें पाता चले की बच्चों की मनोस्थिति पर उपदेशों और सलाहों का क्या असर होता है।
शर्मसार करना और छोटा महसूस कराना:
कभी-कभी अभिभावक अजीब तरीके से व्यव्हार करते हैं जिससे बच्चे अपने आप को छोटा महसूस करते हैं। यह एक गंभीर गलती है। माँ-बाप को इस स्थिति और इस तरीके के बर्ताव से बचना चाहिए।
शारीरिक प्रताड़ना एवं बल प्रयोग:
कोई भी बच्चा कभी भी बलपूर्वक काबू में नहीं लाया जा सकता। बलप्रयोग करने से बच्चे में एक किस्म के विद्रोही रवैये का विकास होता है जो खतरनाक है। अपने बच्चे से बात करें और समझें की उसकी परेशानी क्या है।
हर बच्चा अनोखा है:
अभिभावकों को यह मानना चाहिए कि उनका बच्चा अद्वितीय है और उससे उसी तरह व्यव्हार करना चाहिए। कभी भी अपने बच्चों की तुलना दूसरों से न करें। हो सकता है आपके बच्चे में कोई ऐसी प्रतिभा हो जो आपके पड़ोसी या रिश्तेदार के बच्चे में न हो।
अपराध बोध से ग्रस्त करना:
अपने बच्चों से इतना कठोर व्यव्हार न करें जिससे वे अत्यधिक अपराध बोध से ग्रस्त हो जाएँ। किसी भी मुद्दे को बहुत ज्यादा तूल देने की ज़रूरत नहीं है। छोटे बच्चों की मनोदशा बहुत ही संवेदनशील होती है और यदि आप अपने बच्चे को अपराध का बोध कराते हैं तो उसके अवसादग्रस्त होने का खतरा बढ़ जाता है।
बहुत अधिक आशा न करें:
बच्चों से बच्चों की तरह ही व्यव्हार करना चाहिए। उनसे आप बड़ों की तरह व्यव्हार करने की आशा नहीं कर सकते। बच्चों को अपने निर्णय खुद लेने की छूट दें। इससे आपके और आपके बच्चे के बीच एक मजबूत रिश्ता कायम करने में मदद मिलेगी।
आदर्श बनें:
बच्चा हमेशा अपने माँ-बाप के नक़्शेकदम पर चलता है इसलिए अभिभावकों को एक आदर्श का रूप निभाना चाहिए। ऐसी कोई भी हरकत न करें जो आप अपने बच्चे को करते हुए नहीं देखना चाहते जैसे शराब पीना, धुम्रपान करना आदि। बच्चों में अपने माँ-बाप का अनुसरण करने की प्रवृत्ति होती है और आप अनजाने में उसे गलत दिशा की ओर धकेल देते हैं।